हाँ री मोहे आनंद उर न समाय,
हाँ री हाँ री आनंद उर न समाय,
आनंद घन है ऐसो बरस्यो,
शीश से पैर नहाय. . . हाँ री हाँ री. . .
“आनंद बाजा बाजे गगन में” रंगोक्ति समजाय,
मन की कोकिल दिल में गुंजे, उर्मि मधुकर गाय. . . हाँ री. . .
सुख के मृगजल पी के मानव दु:ख की छाँव में जाय,
मैं आनंद मगन हो नाचु लोग दीवाना कहाय. . . हाँ री. . .
जन्म मरन का उर नाही मोहे सघरा द्वैत मिटाय,
मैं हुं ईश में ईश है मुझ में अद्वैतामृत पाय. . . हाँ री. . .
सगे संबंधी सब रिश्तों के बंधन तूट तूट जाय,
हरि के साथ है नाता जोडा स्वयं हरि को जाउँ. . . हाँ री. . .