आरंभमें व्यथित थी, ये बींसवीं सदी।
आज फिरसे हंस रही है, बीसवीं सदी॥
विश्वयुध्धने हृदय हृदयको चूर्ण कर दिया।
मनुष्यताके मुल्यका असरने हनन किया।
भाव गंग आज सबके दिलमें बह रही … आज…
प्रांतवाद, कौमवाद, भोगवाद बढ गये।
गांधी जैसे संतके रुधिरभी छिड़क गये।
संतान है प्रभुकी बात मन में बस गई … आज…
गाँव गाँवमें प्रभु विचार पुष्प खिल गये।
कार्यके श्रीफल हरिके चरणमें चढा दिये।
अमृतालयम कृषिकी भेंट है मिली … आज…
दैवी अर्थशास्त्र पांडुरंगने खुला किया।
गरीबको अमीर दिलका आज है बना दिया।
तीर्थराजके मिलनमें बात खुल गई … आज…
आयेगी नयी सदी नये निशान पायेंगे।
गाँव गाँव अमृतालयमकी भेंट पायेंगे।
खीलेगी बंधुता प्रभुके छत्रमें तभी … आज…